Wednesday, 4 September 2024

हिलजात्रा


 हिलजात्रा  कृषि और पशुपालकों का त्यौहार है और गोर-महेश्वर त्यौहार के आठ दिन बाद भाद्रपद माह में कुमोर गांव में मनाया जाता है।




Wednesday, 4 October 2023

लोक परंपराएं कुमाऊं उत्तराखंड

         सातूं आठहुँ  गौरव महेश्वर हिलजात्रा






















Saturday, 23 September 2023

Wednesday, 30 August 2023

सातूं आठू पर्व शैव उपासना

 



भगवान शिव और पार्वती का #हिमालय से अटूट संबंध है।

हिमालय की तलहटी के लोक जीवन में

शैव उपासना को अधिक महत्व दिया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तय कर्मकांड के अलावा लोक जीवन में शिव पार्वती की उपासना की परपंरा विद्यमान है।

इसमें भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को सातूं आठू पर्व मुख्य है।

 इसमें गौरा महेश की अनाज के पौधों से मूर्ति बनाकर पूजने का विधान है।

इन मूर्तियों का पूरा श्रृंगार करने के बाद पूजा की जाती है।

प्रतिवर्ष मनाए जाने वाला लोक पर्व भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से

शुरू होता है ।  इसे #विरूड़_पंचमी कहते हैं। इस दिन घर से पूजा स्थल में सफाई

करने के साथ ही  पारंपरिक #ऐपण देकर तैयारी की जाती है।

इसके बाद पांच या सात अनाज मिला कर तांबे के बर्तन में पानी में भिगाए जाते हैं।

ताबें के इस बर्तन में लाल वस्त्र की पोटली भी बनाई जाती है।

 कहीं एक तथा कहीं दो पोटली बनाने का विधान है।

शिखर धुरा ठंडो पाणी मैंसर उपज्यो   #गंगा टालू बड़ बोट लौलि उपजी

ऊंचे शिखर की ठंडी जगह पर #मैसर (#महेश्वर) का जन्म हुआ और

गंगा तट पर वट वृक्ष की छाया  में लौलि (गौरा पार्वती) पैदा हुईं।

उत्तराखंड के पूर्वी अंचल के पिथौरागढ़ की सोर घाटी, #गंगोलीहाट व

बेरीनाग इलाके, बागेश्वर के दुग, कमस्यार व नाकुरी अंचल तथा काली कुमाऊं,

#चम्पावत के इलाकों में सातूं-आठूं के उत्सव पर यह गीत उल्लास मय वातावरण में गाया जाता है।

                                                                डा प्रमिला जोशी 

















Hilljatra Album



Hilljatra is amongst the traditional festivals celebrated in the state of Uttarakhand, especially in Pithoragarh district of Kumaon Region. The festival is celebrated mainly by the people associated with farming in the state. The origin of this festival is believed to be from the Sorar Region of West Nepal to the Sor Valley and was initially introduced in Kumaour village. Later, it was also observed by the people of Bajethi and other villages of Pithoragarh district. 



The word Hill Jatra means Jatra or group dance that is performed in the mud. Hill Jatra is performed in the Kumor village of Pithoragarh region of Uttarakhand, eight days after the festival of 'Gor-Maheshwar', during the month of Bhadra. The Hill Jatra is related to ropai (the plantation of paddy) and other agricultural and pastoral labours of the rainy season. Different pastoral and agricultural activities are presented in a dramatic way like a pair of buffaloes, ploughman etc, and also the regional gods and goddesses. The main attraction of the Hill Jatra is the Hiran Chittal, Lakhiyabhoot, and Mahakali. Other villages of Pithoragarh that celebrate Hill Jatra are Satgaarh, Bajeti, Didihaat. Kanalichhena celebrates this festival only with the Hiran Chittal (Deer Mask Dance) and Mahakali dance. Musical instruments like Nagada, Dhamau, and Bhonkar accompany the various performances to give dramatic effects.
Along with that, Kanalichhina and Askot regions also accepted the festival as 'Hiran Chital' with some modifications. During the festival, a white-clothed deer is worshipped as a regional god. The festivity takes place in three phase, and in the first phase sacrifice of goat is made with all the rituals, whereas in the second phase, dramas are performed for public and in the third and final phase, songs are sung and dance is performed.





वीरभद्र का अवतार लाखिया भूत हिलजात्रा के मुख्य पात्र लाखिया भूत को भगवान शिव के प्रमुख गण वीरभद्र का अवतार माना जाता है. वीरभद्र भगवान शिव की जटा से प्रकट हुआ था. कहा जाता है कि भगवान शिव के ससुर दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपनी पुत्री सती और जमाई भगवान शंकर को निमंत्रण नहीं दिया.


हिलजात्रा की असल शुरुआत पिथौरागढ़ जिले के कुमौड़ गांव से हुई है,कुमौड़ गांव की हिलजात्रा का इतिहास करीब 500 साल पुराना है,कहा जाता है कि इस गांव के चार महर भाई नेपाल में हर साल आयोजित होने वाली इंद्रजात्रा में शामिल होने गये थे. महर भाईयों की बहादुरी से खुश होकर नेपाल नरेश ने यश और समृद्धि के प्रतीक ये मुखौटे इनाम में दिए थे. तभी से नेपाल की ही तर्ज पर ये पर्व सोर घाटी पिथौरागढ़ में भी हिलजात्रा रूप में बढ़ी धूमधाम से मनाया जाता है.



लखिया भूत के आगमन से होता है समापनः इस पर्व में बैल, हिरण, चीतल और लखिया भूत जैसे दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर दर्शकों को रोमांचित करते हैं. इसके अलावा पहाड़ के कृषि प्रेम को भी दर्शाते हैं,इस पर्व का समापन लखिया भूत के आगमन के साथ होता है, जिसे भगवान शिव का गण माना जाता है. लखिया भूत अपनी डरावनी आकृति के बावजूद मेले का सबसे बड़ा आकर्षण है, जो लोगों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देने के साथ ही अगले वर्ष आने का वादा कर चला जाता है.