Wednesday 30 August 2023

सातूं आठू पर्व शैव उपासना

 



भगवान शिव और पार्वती का #हिमालय से अटूट संबंध है।

हिमालय की तलहटी के लोक जीवन में

शैव उपासना को अधिक महत्व दिया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तय कर्मकांड के अलावा लोक जीवन में शिव पार्वती की उपासना की परपंरा विद्यमान है।

इसमें भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को सातूं आठू पर्व मुख्य है।

 इसमें गौरा महेश की अनाज के पौधों से मूर्ति बनाकर पूजने का विधान है।

इन मूर्तियों का पूरा श्रृंगार करने के बाद पूजा की जाती है।

प्रतिवर्ष मनाए जाने वाला लोक पर्व भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से

शुरू होता है ।  इसे #विरूड़_पंचमी कहते हैं। इस दिन घर से पूजा स्थल में सफाई

करने के साथ ही  पारंपरिक #ऐपण देकर तैयारी की जाती है।

इसके बाद पांच या सात अनाज मिला कर तांबे के बर्तन में पानी में भिगाए जाते हैं।

ताबें के इस बर्तन में लाल वस्त्र की पोटली भी बनाई जाती है।

 कहीं एक तथा कहीं दो पोटली बनाने का विधान है।

शिखर धुरा ठंडो पाणी मैंसर उपज्यो   #गंगा टालू बड़ बोट लौलि उपजी

ऊंचे शिखर की ठंडी जगह पर #मैसर (#महेश्वर) का जन्म हुआ और

गंगा तट पर वट वृक्ष की छाया  में लौलि (गौरा पार्वती) पैदा हुईं।

उत्तराखंड के पूर्वी अंचल के पिथौरागढ़ की सोर घाटी, #गंगोलीहाट व

बेरीनाग इलाके, बागेश्वर के दुग, कमस्यार व नाकुरी अंचल तथा काली कुमाऊं,

#चम्पावत के इलाकों में सातूं-आठूं के उत्सव पर यह गीत उल्लास मय वातावरण में गाया जाता है।

                                                                डा प्रमिला जोशी 

















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