Hilljatra is amongst the traditional festivals celebrated in the state of Uttarakhand, especially in Pithoragarh district of Kumaon Region. The festival is celebrated mainly by the people associated with farming in the state. The origin of this festival is believed to be from the Sorar Region of West Nepal to the Sor Valley and was initially introduced in Kumaour village. Later, it was also observed by the people of Bajethi and other villages of Pithoragarh district.
Along with that, Kanalichhina and Askot regions also accepted the festival as 'Hiran Chital' with some modifications. During the festival, a white-clothed deer is worshipped as a regional god. The festivity takes place in three phase, and in the first phase sacrifice of goat is made with all the rituals, whereas in the second phase, dramas are performed for public and in the third and final phase, songs are sung and dance is performed.
वीरभद्र का अवतार लाखिया भूत हिलजात्रा के मुख्य पात्र लाखिया भूत को भगवान शिव के प्रमुख गण वीरभद्र का अवतार माना जाता है. वीरभद्र भगवान शिव की जटा से प्रकट हुआ था. कहा जाता है कि भगवान शिव के ससुर दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपनी पुत्री सती और जमाई भगवान शंकर को निमंत्रण नहीं दिया.
हिलजात्रा की असल शुरुआत पिथौरागढ़ जिले के कुमौड़ गांव से हुई है,कुमौड़ गांव की हिलजात्रा का इतिहास करीब 500 साल पुराना है,कहा जाता है कि इस गांव के चार महर भाई नेपाल में हर साल आयोजित होने वाली इंद्रजात्रा में शामिल होने गये थे. महर भाईयों की बहादुरी से खुश होकर नेपाल नरेश ने यश और समृद्धि के प्रतीक ये मुखौटे इनाम में दिए थे. तभी से नेपाल की ही तर्ज पर ये पर्व सोर घाटी पिथौरागढ़ में भी हिलजात्रा रूप में बढ़ी धूमधाम से मनाया जाता है.
लखिया भूत के आगमन से होता है समापनः इस पर्व में बैल, हिरण, चीतल और लखिया भूत जैसे दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर दर्शकों को रोमांचित करते हैं. इसके अलावा पहाड़ के कृषि प्रेम को भी दर्शाते हैं,इस पर्व का समापन लखिया भूत के आगमन के साथ होता है, जिसे भगवान शिव का गण माना जाता है. लखिया भूत अपनी डरावनी आकृति के बावजूद मेले का सबसे बड़ा आकर्षण है, जो लोगों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देने के साथ ही अगले वर्ष आने का वादा कर चला जाता है.
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