कश्मीर में जेहादी
आतंकवादियों से लड़ते हुए #केंद्रीय_रिजर्व_पुलिस बल के कांस्टेबल #वीर_सिंह (52) शहीद हो गए। एक ओर जहां
पूरा देश शहीद को श्रद्धांजलि दे रहा था, वहीं उत्तर प्रदेश के
फिरोजाबाद जिले के नगला केवल गांव में तथाकथित सवर्ण उस शहीद की चिता के लिए जमीन
तक के उपयोग की अनुमति नहीं दे रहे थे। जमीन सार्वजनिक थी। वहां शहीद की पार्थिव
देह पंचतत्वों में विलीन होती और वहां उनकी मूर्ति भी लगती। वीर सिंह को जेहादियों
की गोलियां लगने का हम दुख मनाएं या इन विकृत मानस से किए गए शहीद के अपमान का? 🔫 🔫 🔫 🔫 🔫
जेहादी वीर सिंह को नहीं
जानते थे, वे
उन्हें सिर्फ भारत को प्रतीक मानकर चल रहे थे। जो भी भारत का रक्षक है, वर्दीधारी है, वह उनके निशाने पर आता है। 52 वर्षीय वीर सिंह, उनके बच्चे,पिता, परिवार-सब कुल मिलाकर
हिंदुस्तान बन गए जेहादियों के लिए। लेकिन हिंदुस्तान के अहंकारी जातिवादियों ने
वीर सिंह को क्या माना? सिर्फ
एक 'छोटी' जात का दलित या नट या अछूत
या बस तिरस्कार के योग्य मनुष्य से भी कम देहधारी।
दुख इस बात का है कि देश में
सड़क दुर्घटना के अपराधी को सजा का प्रावधान है, परंतु शहीद सैनिक का अपमान
करने वाले के लिए सजा ही नहीं है।
पर ये वीर सिंह हिंदू समाज
के तिरस्कृत, जाति
भेद पीड़ित, अंबेडकर
की भाषा में बहिष्कृत भारत के नागरिक होते हैं। इनकी मेधा, मेधा नहीं। इनकी बहादुरी, बहादुरी नहीं। इनकी शहादत 🔫 सिर्फ सन्नाटा ओढ़े एक मौत मान ली जाती है। हम ढोंग करते
हैं, महान
धर्मशास्त्रों और विचारों का।
स्वामी विवेकानंद ने इसी पर
चोट करते हुए कहा था कि महान धर्मग्रंथों का बखान करने के बावजूद जाति में डूबे
हिंदुओं का व्यवहार निकृष्टतम है।
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